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जीना आ गया (संस्मरण ) [CONTEST ]

Dil Ki Aawaaz
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भगवान् ने हमे जीवन तो दिया है पर हमे उसको जीना नहीं आता हम तो सदैव ही उस भगवान् से शिकायत करते रहते है |

कभी अपनी इक्छाओ की पूर्ति न होने पर कभी रिश्तों में मिठास न होने पर कभी अपनी लापरवाही से हुए अपने नुक्सान के कारण तो कभी जीवन कि अव्यवस्था के कारण सभी बातों के लिए हम अपनी कमी न निकाल कर उस आदिशक्ति को ही कोसते रहते है कि भगवान् ये तुमने क्यों किया तो वो तुमने क्यों किया कभी इस बात पर विचार ही नहीं किया कि जो भी उसने दिया है उसका धन्यवाद अगर वो भी न होता तो जीवन कैसा होता |

मैंने भी जीवन मैं कई बार भगवान् को उन बातो के लिए दोषी ठहराया जिसमे उनका कोई दोष था ही नहीं | कभी किसी बात से परेशान तो कभी किसी बात से परेशान एकदम निराशा भरा जीवन जी रही थी न कोई तमन्ना न कोई आरज़ू बस सांस ले रही थी | ऐसा नहीं कि मेरा जीवन बहुत कष्टो से भरा था इसलिए बल्कि मुझे तो सब कुछ बहुत अच्छा मिला |
बचपन हॅसते मुस्कुराते कब बीत गया पता ही नहीं चला मम्मी पापा का प्यार और भाई बहन का दुलार इतना ज्यादा मिला कि कभी कोई कमी आई भी तो उनके प्यार और दुलार के कारण पता भी न चली |
बड़ी हुई तो भी बचपना नहीं गया हर बात पर हंसती थी इतना हंसती थी कि हंसते हॅसते हिचकी आ जाती थी और मम्मी को कहना पड़ता था कि (घट हस्या कर हुन वडी हो गई ये ) कम हँसा करो अब बड़ी हो गई हो | लड़कियों के लिए बड़ी होना भी एक चिंता का विषय है क्योकि सब के सब समझाने लगते है ये न करो ,वो न करो ,धीरे चलो, धीरे बोलो और जो सबसे बड़ी बात कि अब इसकी शादी कर देनी चाहिए और इस तरह इसी धारणा के कारन ग्रैजुएशन के बाद मेरी भी शादी कर दी गई जबकि तब मै कंप्यूटर कोर्स कर रही थी और मुझे जीवन मैं कुछ करने कि ख्वाइश थी लेकिन किसी ने ये सब नहीं सोचा क्योकि सब को लगा अच्छा लड़का अच्छा परिवार मिल रहा है सब कुछ तो है देर करना ठीक नहीं जबकि मेरे अंदर एक युद्ध चल रहा था जो मैं खुद अपने आप से लड़ रही थी |
बहुत शानदार तरीके से शादी हुई बहुत अच्छा पति बहुत अच्छी मम्मी जी बहुत अच्छी ननद सबकुछ बहुत अच्छा कोई कमी नहीं थी |एक अच्छा जीवन जीने के लिए जो चाहिए था वो सब कुछ मुझे मिला लेकिन एक खालीपन सा सदा मुझे महसूस होता रहा वो ये कि मेरी जिंदगी में मैने अपनी पढ़ाई लिखाई का क्या फायदा उठाया घर सम्भालना बच्चे पालना तो मेरी मम्मी ने भी किया वो ही मै भी कर रही हूँ फिर मैंने आखिर पढ़ाई की ही क्यों यही सब सोच सोच कर मैं परेशान रहती और घर मैं कभी कोई छोटी मोटी बात होती तो अपने को और भगवान् को कोसती कि अगर मैं भी कुछ करती तो शायद आज मेरी लाइफ कुछ और होती |
अपनी इन दुविधाओं के साथ जीवन जीते जीते मैं एक निराशावादी जीवन जीने लगी थी जिसमे कभी कोई उम्मीद नहीं होती लेकिन एक दिन मुझे ऐसा सबक मिला जो मेरी जिंदगी को बदल गया |
एक दिन मैं अपने बेटे को उसके स्कूल से वापिस लाने के लिए जा रही थी दोपहर के १.३० बजे थे और अप्रैल का महीना था कड़कती धूप गर्म हवा और उस पर मेरा अशांत मन जो जीवन की किसी छोटी सी बात पर भी गम्भीर हो जाता और अपने आप को कोसता रहता | अचानक मैंने देखा एक गरीब औरत जो सड़क के किनारे एक फटी सी बोरी पर बैठी थी और चाकू छुरी बेच रही थी उसके साथ उसके तीन बच्चे थे दो उसके अगल बगल बैठे थे और एक गोद में था जिसे उसने अपने पल्लू से छिपा रखा था | गर्मी और कड़कती धूप में वो बिना किसी छाया के खुले आकाश के नीचे बैठे थे उनके तन पर जो वस्त्र थे वो भी फटे और गंदे थे ,लेकिन वो तीनो आपस में बात कर रहे और मुस्कुरा रहे थे |उनकी इतनी दयनीय हालत देख कर मुझे रोना आ गया और अपने आप पर शर्मिंदगी भी हुई की एक वो औरत है जो इस कदर जिंदगी की सताई हुई है फिर भी उसके चेहरे पर मुस्कान है इस कड़कती धूप में भी वो अपने होंसले को बुलंद कर के अपने जीवन की हर चुनोती को स्वीकार कर रही है और एक तरफ मै हूँ जो सब कुछ होते हुए भी जीवन से निराश हूँ मुझे अपने आप पर बहुत ग्लानि हुई और उस दिन मैंने अपने जीवन का सबसे बड़ा सबक लिया की जो भी हमे हमारे जीवन में मिला है उसके लिए उस भगवान् को धन्यवाद करना चाहिए |
आज भी कभी जब वो दिन याद आता है तो में कॉप उठती हूँ लेकिन उस दिन से उस औरत की वजह से ही मुझे जीवन जीना आ गया | में प्रार्थना करती हूँ की वो जहां भी कही हो उसका जीवन आराम से गुजरे क्योकि उस दिन के बाद वो मुझे वहाँ पर नहीं नज़र आई ऐसा लगता है जैसे भगवान् ने मुझे जीना सीखाने के लिए ही उस दिन उसको वहाँ पर भेजा |

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