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दरख़्त

Dil Ki Aawaaz
Dil Ki Aawaaz
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एक वक्त था , जब चारों ओर कोई न कोई दरख़्त था |
जिसके मीठे मीठे फल होते थे , जिसकी ठंडी हवा में हम सोते थे |
जो आंधियो का रुख मोड़ते थे ओर तूफानों से लड़ते थे ,जिनकी शखाओं से बड़े बड़े बवंडर भी डरते थे |

आज जब वो नहीं है मिलता न सकूँ कही है ,कभी सुनामी की लहरें आती है तो कभी सर्द हवाएं हमको डराती है |

कभी नदियों का बहाव बढ़ जाता है तो कभी प्रकृति को हम पर गुस्सा आता है |

जिनसे जीवनपयोगी वस्तुंए हम पाते है ,ख़ुशी ख़ुशी जिंदगी बिताते है |

जिनकी छाव में खुद को महफूज़ हम पाते है, उन दरख्तो को कटने से हम क्यों नहीं बचाते है |

उनके बिना सब कैसे जी पाएंगे, प्रण करो कि हम सब अब रोज़ एक नया दरखत लगाएंगे |

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