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छोटी सी ख्वाइश है दिल की मगर दिल से उसे पूरी करना चाहती हूँ ……..बंद रह गई मैं सीप के अंदर मगर अब मोती बन कर चमकना चाहती हूँ ………….मैं हूँ कुछ है मेरा भी वजूद कुछ अब तो अपने वजूद से मिलना चाहती हूँ ………दिल के कोने मैं रहता है कोई अंजाना……….. उस अनजाने से अब मैं मिलना चाहती हूँ ………..अंधेरो की वादियो मैं बीत गई तमाम उम्र …………अब तो उजाले के शिखर पर उड़ना चाहती हूँ ……….वक्त बीत रहा है हर पल जिंदगी का …….अब तो अपने वक्त से मैं मिलना चाहती हूँ ……….प्यार किया सबसे बहुत मैंने ………..अब तो खुद पर फ़िदा होना चाहती हूँ ………खिले तो है बाग़ मैं फूल कई ……….अब तो मैं फूल की तरह खिलना चाहती हूँ …………पहचानती हूँ सब बड़े बड़े लोगो को ……..अब तो खुद की पहचान बनाना चाहती हूँ ………..दिया तो है उस प्रभु ने बहुत कुछ मुझे ……….एक बार फिर उसकी रेहमत पाना चाहती हूँ ……….है विश्वास कि मिल जायेगा मुझे वो सब कुछ …….जो मैं पाना चाहती हूँ ………..छोटी सी ख्वाइश है दिल की मगर दिल से उसे पूरी करना चाहती हूँ ………खुश्बू की तरह फ़ैल जाऊगीं पुरे जहान मैं ………इसलिए खुश्बू बन के अपनी खुश्बू फैलाना चाहती हूँ ……..छोटी सी ख्वाइश है दिल की जिसे पूरी करना चाहती हूँ .
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